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व्यवस्थित जान माल की रक्षा के सम्बन्ध में खर्च अधिक होने से आवाज उठायी तथा रखवाली की रकम बढ़ाने का अभियान उठाया। परिणाम स्वरूप श्री संघ में वातावरण भधिक आन्दोलित न हो इससे ई. स. 1863 वि. सं. 1919 में वार्षिक सप्ताह की रकम 4500 में वृद्धि करके रक्षा के सम्बन्ध में दस हजार की रक्षा हेतु देने का तोसरा करार पालीताणा दरबार के साथ किया।
तीसरे करार के अनुसार जैन श्री संघ के साथ पालीताणा स्टेट व्यवस्थित व्यवहार ठेठ ई. स. 1880 वि. सं. 1936 तक बनाये रखा। परन्तु जहां “जहां लाहो तहां लोहो" तथा गिरते काल के विषम प्रभाव से पालीताणा स्टेट के राज्यकर्ताओं तथा कार्यभारी आदि को यों लगा किइतने अधिक यात्रार्थी आवें तथा मात्र दस हजार रुपयों की बंधी रकम ? यों कैसे?
ई. स. 1863 वि. सं. 1919 में सम्पन्न तीसरे करार पत्र को बहुत समय हो गया। देशकाल अब फिर गया। इस लिए यह बंधी रकम के करार को चिपटे रहने से स्टेट को हानि होती है । इसलिए पालीताणा शहर के यात्री दीठ पांच रुपैया तथा बाहर गांव के यात्री दीठ दो रुपया का यात्रीकर डालने का विचार बाहर आया। थोड़े समय में जैन श्री संघ के बहुत विरोध झंझावात होने पर भी राज्यकर्ताओं ने
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