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हजारों लाखों यात्रालुओं कार्तिक के चैत्री पूनम के तथा अक्षय तीज के बड़े बड़े मेलों आदि में चौकीदारी करने वाले काठी दरबारों के लोभ का कीड़ा कुलबुलाया तथा जैन श्री संघ से कालचक्र से माथाकूट में उतरे । प्रति सप्ताह पैसा बांध देने की नौंक-झौंक हुई।
अन्ततोगत्वा उस समय के अग्रगण्यों ने समयोचित विचार करके ई. स. 1860 वि. सं. 1916 में इकरारनामा करके वार्षिक 500 रुपया रोकड़ा देने का तय किया । अवसरों अवसरों पर दिये जाने वाले कपड़े अनाज आदि लागत बंद की । इस समय गुहिल वंश के ये ठाठी दरबार ने क्षत्री तरीके रहने की शुरूआत पालीताणा में कर दी ।
व्यवस्था के नाम से राज्यतंत्र व्यवस्थित करके कारकून तरीके नामजद करके स्वयं उनके ऊपर राज दरबार के रूप में रह कर धीरे-धीरे पालीताणा स्टेट का रूप वि. सं. 1875 के लगभग प्राप्त हो गया । इससे भी अन्य कारनामे के समय सत्तावश काठी के पास होने से रोकड़े पैसों से तय की। इस तरह विषम काल चक्र के परिवर्तन के प्रताप से अन्दर ही अन्दर चरमराहट के साथ पालीताणा दरबार तथा जैन श्री संघ की बीच में गिरिराज के रखरखाव के सम्बन्ध में खर्च ई. स. 1860 वि. सं. 1916 तक ठीक ठाक चलता रहा। बाद में विषम काल के प्रभाव में दरबार ने यात्रार्थियों की
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