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अग्रगण्य समझ गये और बात को ठंडी पटक कर खड़े हो गये।
इस प्रकार जैन श्री संघ पर प्रागत दोनों आक्रमणों को पूज्य श्री ने अद्भुत विद्वता के मेल से बैठते चातुर्मास ही निष्फल कर दिया। दोनों विपक्षियों को हतप्रभ होकर जिन शासन के साथ ऊंगली उठाने की योग्यता भी नही रही । इस चातुर्मास में सकल श्री संघ में पूर्ण शान्ति रही। विविध धर्म क्रिया द्वारा चातुर्मास खूब ही उमग धर्मोल्लास के वातावरण में व्यतीत हुआ । इस चातुर्मास के उत्तरार्ध में पर्युपण के चालू रहते पूज्य श्री के पास अहमदाबाद से गच्छाधिपति द्वारा तथा भावनगर से पू. श्री वृद्धिचन्दजी द्वारा इसी प्रकार पाली ताणा से मिले समाचार के अनुसार पालीताणा स्टेट की व्यक्ति दीठ कर वसूली की बात के समाचार मिलने से आश्विन मास की अोली के अन्तिम दिन पांच पांडवों के मुक्तिगमन के प्रसंग को विस्तृत करके सकल श्री संघ को कमर कसके राज्य के उपद्रव को हटाने के अभियान उठाने हेतु गम्भीर प्रेरणा दी।
श्री संघ को सम्पूर्ण ब्यौरा समझाकर कि सौराष्ट्र के तिलक समान तरण-तारण हार श्री शत्रुजय गिरिराज अपने जैन श्री संघ की (न्वामित्व) मिल्कियत है, जिसके ककर-कंकर में अत्यन्त आत्मायें मोक्ष में गई हैं। अत: वह देहरासर से
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