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वाला हुप्रा । पूज्य श्री ने चातुर्मास पूर्णं होते ही उदयपुर श्री संघ का बहुत आग्रह होने पर भी का. वि. 10 विहार करके " श्रायड़" * श्री उदयपुर के महाराणा की प्राचीन राजधानी (1) श्री श्रद्धबुद जी (2) देलवाड़ा (3) दयालशाह का किला (4), राजनगर, श्री करेड़ा तीर्थ (5)
* (1) यह गांव वर्तमान उदयपुर से पूर्व दिशा में 3 मील पर है । मेवाड़ के महाराणाओं की प्राचीन राजधानी रूप था: जहां वि. सं. 1285 में मेवाड़ के महाराणाओं ने जिस भूमि पर प्रभु महावीर महात्मा की 44 वीं पाट पर विराजमान पू. प्रा. श्री जगत चंद्र सूरीश्वर जी म. की वर्षो की आंबील आदि की कठिन तपस्या के कारण से 'तपाविरूध ' जैसा गुण ख्याति प्रदान की तथा दिगम्बरों के साथ वाद में हीरे के समान अभेद्य सिद्ध हुए जिससे भी प्रसन्न होकर महाराणा जी ने "हीरे " जैसा विरूध भेंट किया। जहां आजभी श्री संप्रतिम के काल के देरासर जिनबिंब इस भूमि की अतिप्राचीनता की साक्षी भर रहे हैं ।
(2)
मेवाड़ की राजगद्दी के परमाराध्य श्री एकलिंगजी महादेव केराज्य-मान्य स्थान के पास ही उत्तर में है 14 माइल पर यह तीर्थ है | जहां श्री शान्तिनाथ प्रभु की 10 से 12 फीट की बैठी श्याम अतिसुन्दर प्रतिमा जी है । इस मंदिर के आसपास अनेक जैन मंदिरों के भग्नावशेष हैं ।
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