________________
शिथिल होने पर हर प्रकार से सेवा भक्ति करने वाले एक पुण्यात्मा के स्वर्गवास से तनिक हत्कंप अनुभव किया। परन्तु संसार में रहद की घटमाला तथा जन्म-मरण की अविरल परम्परा का विचार कर पूज्य श्री स्वस्थ हुए तथा स्वर्गस्थ मुनि की संयमाराधना, तपस्या सेवा भक्ति आदि गुणों के अनुमोदन के भाव से मानसिक धैर्य को धारण किया ।
महा-परिष्ठा पत्रिका का कार्योंत्सर्ग करके पूज्य श्री ने श्रावकों को सोपे । बाद में श्रावकों ने यथोचित कर्तव्य करके उपाश्रय में ऐसी जगह उन्हें विराजमान किया जहाँ नीचे सब लोग उनको दर्शन कर सके । रातोंरात सुन्दर जरी वाली पालकी बनवाकर प्रातः 7 बजे भव्य शमशान यात्रा "जय जय नंदा, जयजय भद्दा के बुलन्द घोष के साथ संघ निकाल कर योग्य पवित्र भूमि पर 10-30 बजे चंदन के सुगन्धित काष्ट की चिता बनाकर हजारों के चढ़ावे के द्वारा अग्नि संस्कार करके शुद्ध होकर बड़ी शान्ति सुनने के लिए पूज्य श्री के पास आये।
पूज्य श्री ने भी मृत शरीर को ले जाने के पश्चात साधू के उचित उलटी देव वंदन आदि क्रिया करके साथ चौमुखी प्रभुजी पधरा कर सकलसंघ के साथ देववंदन किया । उस वंदन की समाप्ति के समय शमशान यात्रा गये हुए पुण्यवान भी आ गये । उन्होंने बड़ी शांति तथा इस विषय में पूज्य श्री
१३३