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पूज्य श्री उस समय श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ मंत्र का मांत्रिक विधि से पूजन करके उसके जप से निवृत हुए ही थे तथा दीक्षा के मुहूर्त के लिए सबको पाया जानकर संकेत से एक तरफ बिठाकर जाप की मुद्रा को बनाये रखा, अंगरक्षा मार्जन आदि संक्षिप्त विधि से करके थोड़ी देर ध्यानस्थ हुए । थोड़ी देर में पूज्य श्री स्वस्थ होकर पंचाग लेकर पंचाग शुद्धि रवियोगादि विशिष्ट योगबल, चंद्रबल कुयोग परिहार, आदि देखकर माघ सु. 3 का श्रेष्ठ मुहूर्त 10-24 से 29 मिनट के श्रेष्ठ निश्चित करके पूज्य श्री ने कागज पर लिख दिया।
पूज्य श्री ने भीलवाड़ा की तरफ विहार की बात की। परन्तु दीक्षार्थी बहिन के कुटिम्बियों ने कहा कि-"बावजो सा! उग रहे पौध को पानी मिलना जरुरी है । हमारे घर से यह बाई पूण्यशालिनी होकर प्रभुशासन में अपना जीवन समर्पित करना चाहती है तो इसकी विवेक वैराग्य भावना को परिपूष्ट करने के लिए आपके तात्विक सिंचन की खास जरूरत है, अतः कृपा करके प्राप विहार का विचार न करें। हमारे कुल को तारने वाली दीक्षा के पवित्र-प्रसंग पर हमें क्या करना चाहिए। इसका मार्गदर्शन आपके बिना हमें कौन दे।" आदि दीक्षार्थी के कुटम्बियों की विनती थी पूज्य श्री ने वर्तमान जोग तथा जैसी श्रेत्र-स्पर्शना से संतुष्ट किया।
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