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कुण्डल तैयार करवाये । ऐसे अन्य अनेक धर्मकार्यो से चातुर्मास धर्मोल्लास भरे वातावरण में पूरा होने आया । परन्तु आसोज विद दसम लगभग पूज्य श्री को बुखार आने लगा । योग्य उपचार करने पर भी बुखार ने उग्र रुप ले लिया । कार्तिक सुद प्राठम को बायें पिंडलो के बगल में कोई गाँठ जैसा हो गया जिसकी वेदना से बुखार और बढ़
गया ।
देशो निर्दोष वनस्पति लेप आदि का उपचार प्रारम्भ किया प्ररन्तु आराम नहीं पड़ा । चातुर्मास परावर्तन का कार्य ज्यो त्यों पूरा किया। बाद में का वि तीज लगभग से वेदना बढ़ गई । इस विषय में पूज्य श्री का विहार करने की तौव्र भावना होते हुए भी विहार नहीं हो का और एक ही क्षेत्र में इस कारण उपरा - उपरी चातुर्मास करने पड़े । परन्तु शेष अवधि में गांव-गांव विचारण हो तो ठीक ऐसी भावना पूज्य श्री ने पू. गच्छाधिपति अहमदाबाद पत्र द्धारा सूचित किया ।
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इस सारे ब्यौरे की झलक पू. मूलचंद जी म. को सं. 1938 का. वि. 2 के लिखे गये पत्र में जानने को मिलती है । यह पत्र अक्षरश: निम्नानुसार है :श्री अहमदाबाद से मुनि नूलचंद जी की सुख- शाता पढ़ें । श्री उदयपुर मुनि झवेर सागर जी तुम्हारा पत्र सू. 12 का मिला है ।
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