________________
वाले विवेचना करना प्रारम्भ किया। रतलाम के श्री संघ ने पूज्य श्री झवेर सागर जी म. को शासन के गौरव की रक्षा करने के लिये पुनः रतलाम पधारने की आग्रह भरी विनती कर उन्हें वापिस लाये तथा पूज्य श्री ने हरिभद्र सूरि म. के षडदर्शन समुच्चय ग्रंथ के आधार पर सर्व दर्शन की समीक्षा रूप"श्री जैन दर्शन की विशेषताये कौनसी है"इस विषय की सूक्ष्मतर विवेचनायुक्त व्याख्यान प्रारम्भ किये।
धीरे-धीरे उन सन्यासियों के कानों में बात पहुचो तो प्रथम तो “एते तु जैनाः नास्तिकाः वेदबाहागः क एते षामानासः दर्शनप्ररूपां" ( ये जैन तो वेद को नहीं मानने वाले तथा नास्तिक हैं उनका दर्शन विषयों में क्या विश्वास ?)
__"नहि ऐतैः सह वार्ताकरणं सुष्ठ । एतेषामनोश्रवरवा दि-नांन मुखमपि न दृष्टिव्यमिति अस्मार्क स्थितिः ।' (इन लोगों के साथ बात करना भी ठीक नही है।'' ईश्वर को नही मानने वालेइन लोगों का मुंह देखाय ऐसी हमारी मर्यादा है) ऐसे-ऐसे अहंकारपूर्ण उपेक्षा-वचनों से पूज्य श्री की बातों को उड़ादेने का प्रयत्न किया। पूज्य श्री तनिक भी आवेश में आये बिना मूल बात को पकड़ रखो वैदिक धर्म की कौनती भूमिका है ? तथा जैन धर्म की कैसी विशेषता है । इस बात
४६