________________
पूज्य श्री ने स्वयं प्रत्येक देरासरों में विवेकी श्रावकों को लेजाकर प्रशातनामों को दूर करने का प्रयत्न किया । सामयिक, प्रतिक्रमण, नवकारशी, रात्रि भोजन त्याग आदि श्रावकों के आचार विचार की समझाइश के साथ प्रभुदर्शन देवपूजा में पूण्यवानों को अत्यधिक प्रयत्नशील बनाया।
इसके अतिरिक्त पूज्य श्री ने स्थानकवासियों 'नायें समाजियों इत्यादि लोग जो बुद्धि भेद करने गले मंतव्यों के थे व्यवस्थित रूप से भडाफोड़ दिया। श्री संघ में पूज्य श्री की विद्वता-शास्त्रीय प्रतिभा तथा अपूर्व शक्ति देखकर श्री संघ के लाभ के लिए वि. सं. 1933 के लिए आग्रहभरी विनती की । पूज्य श्री ने लाभ-हानि का निरूपण कर वर्तमान योग यों कहकर लगभग स्वीकृति प्रदान की। - चातुर्मास के पूर्व उदयपुर के आस-पास के गांवों में विचारण कर वहां के जैनों की जो धर्मवासना यतियों के शिथिलाचार से तथा स्थानकवासियों के बाहृय चरित्र के देखावे से एवं एकांगी स्थापना निपेक्षा को अमान्य करने की बातों से विचलित हो गया था। उसे शास्त्रीय सदुपदेश तथा शुद्ध चरित्र के पालन से व्यवस्थित करके अनेक जैन मन्दिरों को आशातनागों को दूर किया । संघ के प्राग्रह से श्री संघ की धर्मभावना को अधिक परिपुष्ट करने के शुभ आशय से वि. सं. 1933 का चातुर्मास उदयपुर में हुआ।