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उन्हें बुला लाये । चैत्र सु. 5 मंगल दिवस उनका प्रवेश हुआ । भाग्य से त्रिस्तुतिक आचार्य महाराज के मुकाम के पास ही उपासरे में पूज्य श्री डेरा डाले होने से व्याख्यान चर्चित विषय की पूरी सूचना सावधानी से मिलती गई ।
पूज्य श्री ने भी व्याख्यान में श्री वीतराग परमात्मा की भक्ति का स्वरुप के वर्णन प्रसंग में "सम्यग् दृष्टि-देव जिन शासन भक्त देव है" प्राराधक पुण्यात्माओं की भावस्थिरता रूप वैयावच्च का काम वे करते है" "उनका स्मरण मात्र करने में पांचवा छठ्ठा गुणवालों को दोष नहीं लगता है" "उनका निर्मल सम्यकत्व तथा संघ वैयावच्च करने के सम्बन्ध में गुणानुराग दृष्टि से स्वीकारने के बजाय अपलाप करने से सम्यकत्व उल्टा जौखम में हो जाता है ।" आदि शास्त्रीय बातें अनेक शास्त्रों के प्रमाणों से प्रस्तुत करना प्रारम्भ किया ।
जिज्ञासुगण यहां से सुनकर वहां जाय और पूज्य आचार्य श्री से प्रश्न पूछे । वहां से सुनकर पूज्य श्री के पास आने तथा शंकाओं का स्पष्टीकरण युक्त समाधान ग्रहण करने लगे । कुछ दिनों के बाद चर्चास्वरुप खड़ा हो गया परन्तु पूज्य श्री ने कहा कि "हमें तो कोई हर्ज नहीं आचार्य श्री से पूछो। वाद-विवाद का तो कोई अन्त नहीं प्रायगा । ओर हमारी, दोनों की बातें समझकर सत्य निर्णय कर सके
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