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बाकी की विधि होने के पश्चात शुभ लग्न नवमांश में मुनि श्री झवेर सागर जी नामक रण हुअा।।
सकल श्री संघ में भी जिन शासन के प्रबल जयघोषयुक्त नूतन मुनि श्री ने अभिमत्रण वासक्षेप वाले अक्षत से भावपूर्वक उनका स्वागत किया।
पू. गुरुदेव ने मंगलकारी हित शिक्षा फरमायी की "देवों को भी दुर्लभ म नव जीवन के सार रूप सावध योग के सर्वथा त्याग स्वरूप सर्व विरक्ति-धर्म की प्राप्ति की है तो प्रभु शासन के श्रद्धापूर्वक ग्रहण करने के साथ संयम धर्म का सफल पालन गुरुनि ठा से आत्मसमर्पण युक्त करके जीवन धन्य प.वन बन ओं"
नव दीक्षित मुनि श्री ने भी पू. गुरुदेव श्री के वचनों को शुकन की गांठ की तरह हृदय में बराबर धारण कर • लिया।
पीछे सकलसंघ के साथ महोत्सव पूर्वक श्री संभवनाथ प्रभु के जिनालय दर्शन, चैत्यवंदन कर सूरजमल सेठ के डेरे पधारे ।
सागर शाखा के बाहर पट्टधर पू. मुनि श्री मयासागरजी म.के दो शिष्य-प्राध्य शिप्य पू. मुनि नेम सागर जी म. तथा उनकी परम्परा शासन के भव्य गौरव को बढ़ाने वाले बस