Book Title: Saddharm Bodh
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Nanebai Lakhmichand Gaiakwad

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Page 10
________________ ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, । मनुष्यरूपेण मृगाश्चरंति ॥ १ ॥ विशेषार्थ-ऐसे उत्तम मनुष्य जन्म को प्राप्त कर जिस मनुष्य में 'न विद्या, उदरपूर्ण करने के लिये या द्रव्य (धन) प्राप्त करने के लिये विद्याभ्यास कर के गवरनर बॉरिष्टगदि बडी पदवी प्राप्त की होगी, परन्तु जिस विद्या (ज्ञान) द्वारा आत्मोन्नति होवे ऐसी धर्म विद्या-ज्ञान का अभ्यास करा नहीं, 'न तपो,' सदैव पेक्षा-आधिक रस युक्त पकवान्न-मिष्टान्न का भक्षण करके एकादशी जैसे तप किये होंगे परंतु जिस तपश्चर्या कर के काम क्रोधादि षड्रिपु का दमन होवे ऐसे निराहार तप सवैया-गिरी और छुहारे खाय, किसमिस और बदाम चाय सांठे और सिंघाडे से, होत दिल स्वादी है । गंद गिरी कलाकन्द, अरबी और सकरकन्द, कुदन के पडे खाय, लोटे बड़ी गादी है ॥ खरबूजे तरबूजे और अम्ब जाम्बु लिम्बू जोर । सिंघाडे के सीरे से भूक को भगादी है । कहत है नारायण करत है दूनी हान, कहने की एकादशी पन द्वादशी की दादी है ॥ १ ॥

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