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। १८ ! . ९ क्षान्ति- क्षमा करना अर्थात् किसीने अपना अपराध किया हो उस पर क्रोध न करना जो होनहार था वह होगया इत्यादि विचार कर क्षमा करना सो क्षमा है। -- उक्त ९ कर्तव्य धर्मसाधन करने या आत्मोद्धार करनेके बताए। उनका आचरण करनापालना सो ही धर्म है। सब मतके शास्त्रोंसे धर्मका स्वरूप
जैनधर्मके सुयगडांग शास्त्रके प्रथम श्रुतस्कन्ध प्रथम अध्यायके चौथे उद्देशेकी १० वीं गाथामें कहा है। गाथा-एयं खुणाणीणी सारं जंण हिंसइ किंधणं ।
__अहिंसासमयं चेव, एतावत्तं वियाणीया ॥ __ अर्थात्-ज्ञान प्राप्त होनेका सार यही है कि किंचित् मात्र किसी भी जीवकी हिंसा नहीं करना ऐसा यह अहिंसाधर्म सर्वमान्य है ।
दशवकालिक शास्त्रके आदिमेंही ऐसा कहा हैगाथा-धम्मो मंगलमुकिटं । अहिंसा संजमो तवो ॥
दवावि तं णमंसंति । जस्स धम्मे सया मणो।