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मिथ्या ममत्व
( तर्ज- बिना रघुनाथ के देखे नहीं दिल्को करारी है )
चले जाओगे दुनियांसे, कहना ये हमारा है । उठा के चश्म तो देखो, कौन वहां पर तुम्हारा है || टेर ॥ कहां से आए हो यहांपर, और क्या साथ लाए थे । बनो मुखत्यार तुम किसके, जरा ये भी विचारा है || चले० ॥ ॥ १ ॥ गुनाहोंके फरश ऊपर, लगा जुल्मोंका तकिया है । मजे में नींद देते हो खूब शैतान प्यारा है || २ || दिन खाने कमाने में, ऐश मस्ती में खोई रात । भलाई कुछ न की ऐसी, जिससे वहां पर सहारा है || ३ || जहां तक दम वहां तक है, तेरे धन माल और कुनबा । निकलते दम धरे जंगल, करे आखिर किनारा है || ४ || निगाह चौतरफ तू उस वख्त, जो फैलाके देखेगा। तो अकेला आप खाली हाथ, किए जुल्मोंका भारा है ॥ ५ ॥ कजा आने की है देरी, फकीर सी दे चला फेरी | फिर मौका कहाँ ल्हेरी, किया तुझको इशारा है ॥ ६ ॥ कहां शम्भू चक्र मानी, कहां ब्रह्मदत्तसे भोगी । कहां वसुदेवसे योधा, हुए ऐसे हजारो हैं || ७ || गुरु हीरालालके परसाद, कहे मुनि चौथम सबसे । बनो जिनधर्म प्रेमी, तो सुधरे काज सारा है ॥ ८ ॥