Book Title: Saddharm Bodh
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Nanebai Lakhmichand Gaiakwad
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[ ८३ ] आवे तो मोल लेजावो, म्हे, नहीं मांगादामजी ।। तुम।।५।। माळ पीकेछे थोडो जिससु, खर्च पुरो नहीं चाले। आवेळा कोई उत्तम प्राणी, माल हमारे पल्लेजी ॥ तुम ॥६॥ माळ बीके तो रहणो होसी, मुणयो भवीजन पात । भरया खजाना कदीयन खुटे, सत्गुरु सिरपर हाथजी ॥तुम॥७॥ समत १९३६ सालमें, अम्बाला चौमास । करण मुनि उपदेश मुनायो, मोक्ष सावनरी आशजी ॥ तुम ॥ ८ ॥
तर्ज-छोटी बडी सईयांए. श्रीरिषभदेव भगवान् , करी तो मेरी पालना ॥ टेर॥ मैं चाकर हु तुम चरणनको, हो सहाय करी महाराज, दुःखीको दुःखसे टालना ॥१॥ भवसागरमें मेरी नौका, हां, आन पडी मझधार; जल्दीसे संभालना ॥२॥ संकट मोचन विरद आपको, हां, निराधार आधार, करम रिपु गालना ॥३॥ ओम् ऋषभ तूं ही मम रक्षक, हां, तूं ही मेरे सिरताज, फन्देसे निकालना ।। ४ ॥ गुरुपरसादे चौथमल यं, हां. अरज करे हरबार जरा तो निहालना ॥५॥
तर्ज-मेरे स्वामी बुलालो मुगतमें मुझे.
महावीरसे ध्यान लगायां करो, सुख सम्पति इच्छित पायां करो ॥टेर ॥ क्यों भटकता जक्तमें, महावीरसा दूमा नहीं । त्रिशलाके नंदन जगत चन्दन, अनन्त ज्ञानी है वही । उनके चरणोंमें शीश नमायां करो ॥१॥ जगत भूषण विगत दृषण, अधम उधारण वीर है । मूर्य से भी तेज है,

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