Book Title: Saddharm Bodh
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Nanebai Lakhmichand Gaiakwad

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Page 88
________________ सागर सम गम्भीर है । ऐसे प्रभुको नित उठ ध्यायां करो ॥३॥ महावीरके परनापसे, होती विजय मेरी सदा, मेरे वसीला है उन्हींका जापसे टले आफदा । जरा तन मनसे लोह लगायां करो ॥३) लसानी ग्यारे ठाणा, आया चोरांसी साल है । कहे चौथमल गुरु किरपा से, मेरे वरते मंगल माल है । सदा आनंद हर्ष मनाया करो ॥४॥ तर्जदादरा. विद्या पढने में जीया लगायां करो ॥ टेर ।। विद्या ही नर और नारीका भूषण। आलसको दूर भगाया करो ॥१॥ विद्यासे इज्जत विद्यास कीर्ति । सदा इसका अभ्यास बढाया करो ॥२॥ अमोल वख्तको हंसी मजाकमै । कभी भूळके तुम मत गंवाया करो ॥३॥ हंसना, लडना, गाली का देना। ऐसी बातें जवां पै न लाया करो ॥४॥ चौथपळ कहे सुनो सब पाठक, नशेबाजोंके पास न जाया करो॥५॥ तर्ज-अरज पर हुक्म श्रीमहावीर चढा दो. उठो जिनधर्मके प्रेमी, नाम महावीर लेले कर । बजावो संघकी सेवा, नाम महावीर ले कर ॥ टेर। तुम हैं जैनियों लाजिम तन, मन, धन तीनोंको। न्योछावर धर्म पै कर दो नाम महावीर लल कर ॥१॥दुःख मोचन मोक्ष दाता; पद अरिहंत नृपको दे । करो उत्साहसे सेवा नाम महाबीर लेले कर |२|| शिव सुन्दर पुष्पमाका; कर कमलोंमें ले उभी । पहेनावे संग सेवकको नाम महावीर

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