Book Title: Saddharm Bodh
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Nanebai Lakhmichand Gaiakwad

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Page 62
________________ [ ५८ ] था। फिर पानी क्या फोकटमें आता है ? किंतु मूर्ख लोग इतना भी नहीं समझते कि पानी जगजीवन है उसके विना क्षण भर भी नहीं रह सकते हैं और पानी रत्नोंसे भी बहु मूल्यवान् है । (३) शरीर आच्छादन [ओढने के लिए अनेक वस्त्र होनेपर भी कितनेक लोग शीत (ठंड) का निवारण करनेको रास्तेका कूडा कचरा इकट्ठा करके और लकड, छाने, घास वगैरा जो संसारके अनेक काममें आनेवाले पदार्थों को जलाकर तापा करते हैं, यह भी अनर्थ है, क्यों कि ऐसे तापनेसे एक तरफ उष्णता और दूसरी तरफ शीतलता रहनेसे सर्दी गरमीकी बीमारी होती है और जो कभी भूल कर शरीरको तथा वस्त्रको अंगार लग गया तो जलकर अकालमृत्यु होजाती है । तैसे ही कितनेक लोग दीपावलीको तथा लग्नादिप्रसंगमें दारू (बारूद) के खिलोने छोडते हैं, यह भी अनर्थ है, यद्यपि उस क्षणभरको मजा मालूम पड़ता है, परन्तु बहुतसी वक्त मनुष्योंकी मृत्यु हो जाती है

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