Book Title: Saddharm Bodh
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Nanebai Lakhmichand Gaiakwad

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Page 66
________________ [ ६२ । विषय और नियम कहे हैं, यह परात्माकी रक्षा करनेके कहे हैं, परन्तु जो अपनी आत्माकी रक्षा करेगा वही परात्माकी रक्षा कर सकेगा, इसलिए अब कुछ स्वात्माकी रक्षा करनेका उपदेश देता हूं, उसे दत्तचित्त हो पठन कीजिए । __ स्वात्माकी रक्षाका अर्थ ऐसा नहीं समझना चाहिए कि भक्ष्याभक्ष्यका विचार नहीं करके इच्छित पदार्थका भक्षण करके शरीरको पुष्ट करना तथा विषयकषायसे अन्तरात्माका पोषण करना, धनका कुटुम्बका संयोग मिलाकर किसी प्रकारकी बडी उपाधि (पदवी) प्राप्त करना, या विषयभोगमें लुब्ध होना, इत्यादि कामोंमें किंचित् सुख प्राप्त होता है, परन्तु इनका परिणाम आत्माको दुःखदाता होता है। भर्तृहरिशतकमें कहा है किभोगे गेगभयं कुले च्युतिभयं वित्तं नृपालाद्भय । मौने दैन्यभयं बल रिपुभयं रूपे जराया भयम् । शास्त्रे वादमयं गुणं खल भयं काये कृतान्ताय । 'सर्व वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां वैराग्यमवाभयम् ।। अर्थ-पंचेन्द्रिय संबंधी जो भोगोपभोगमें

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