________________
[ ७६ ] कर शरीरादि रक्षाकी सामग्री क्या वक्तपर प्राप्त नहीं कर सकते हैं ? मनमें निश्चय हुआ तो कुछ टोटा नहीं है, इस प्रकार संतोष धारण कर लोभरूप शत्रुका पराजय करना चाहिए।
[६] मत्सर-जिन मनोविकारोंका उद्भव होकर दूसरेकी संपत्तिका अवलोकन कर ईर्ष्या उत्पन्न कर द्वेषाग्निसे संतप्त होकर उसको दुःखी करनेकी इच्छा होती है तथा उसका प्रयत्न करनेको सहज से ही मानसिक उत्तेजना होती है, तथा दूसरेकी कीर्ति श्रवण कर मनमें तलतलाट होती है उस मानसिक विकासको मत्सर कहते हैं। मत्सरी मनुष्यका कोई भी कार्य सफल नहीं होता है, जो जो सुख दुःखका अनुभव जगत्में होता है वह सब पूर्वकृत पुण्य पापके फल हैं, जिसने जैसे कर्म किए हैं उसी प्रकार उसे सुख दुःखकी प्राप्ति होती है, इसलिए जो दूसरोंका बुरा विचार करते हैं उस से दूसरेका तो बुरा नहीं होता है, किंतु बुरा चाहने वालेको बुरे परिणामोंके योगसे अशुभ कर्मका