Book Title: Saddharm Bodh
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Nanebai Lakhmichand Gaiakwad

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Page 75
________________ [ ७१ ] सत्यानाशमें मिला दिया है तो फिर मेरी कथा क्या ? तथा कितनी भी धन, संपत्ति, कुटुंब आदिका जोर हुआ तो भी इसके नाश होनेमें क्या लगती है । इस क्षणभंगुर शरीरकी सम्पदाका गर्व करना झूठा है, इत्यादि सद्विचारोंसे मदरूप शत्रुका नाश कर निरभिमानी होना चाहिए । 1 [४] मोह - संसार में सब दुःखों का मूल कारण मोहरूप शत्रु ही है, मनुष्य मोहमें अन्धा होकर अपने आत्मस्वरूपको भूलकर यह मेरा घर, यह मेरा धन, यह मेरा कुटुंब इसी तरह मेरा मेरा करता बडे २ श्रीमान्, विद्वान् भी धन कुटुंब के बेगारी हो रहे हैं जिनको रात-दिन चैन भी नहीं पडता है । यह सब प्रताप मोहराजाका ही है, मोहके संबंधसे इस लोकमें फजीता तथा अनेक दुःखोंको भोगना पडता है और परलोक में नरकादि दुर्गतिकी विटंबना भोगते हैं, इस दुष्टशत्रुका पराजय करनेके लिए विचार करना कि, हे प्राणी ! तूं अकेला आया और अकेला ही है, तेरा कोई भी नहीं है, तैसे ही तू

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