Book Title: Saddharm Bodh
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Nanebai Lakhmichand Gaiakwad

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Page 74
________________ [ ७० ] मृत्युके ग्रास बनकर नरकमें यमदेवताके हाथसे उबलता हुआ सीसा, तरुआ, तांबाका रस प्राशन करते हैं। इस प्रकार गर्विष्ठ मनुष्य भी मदान्ध बनकर नाम कमानेके लिए केवल दो दिनकी वाह वाह लेनेके लिए रंडियां नचानेमें दारूखाना छोडने [खोलने] वगैरा कुकर्मों में घर, धनको स्वतः बत्ती लगानेमें देर नहीं लगाते हैं । थोडा ही अपमान हुआ कि आत्मघात करके मरकर नरकगतिमें यमके मेहमान बनते हैं, वहां मारण, ताडन वगैरा अनेक दुःख भोगते हुए हजारों वर्ष रोरो निकालते हैं, ऐसा आत्मघातिक यह मदरूप शत्रु हैं इसका नाश करनेके लिए विनय-नम्रतारूप शस्त्र धारण करना चाहिए। मनमें विचार करना चाहिए कि जो यह ऊंच स्थिति प्राप्त हुई यह पूर्वोपार्जित पुण्यके फल है, अपनी आत्माको सुधारनेके लिए जो यह उत्तम सामग्री प्राप्त हुई है इसके अभिमानके वश होकर नुकसान कर डालना यह कैसी जबर मूर्खता है, रावण और कौरव जैसे शृर वीरोंको इस गर्वने

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