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लुब्ध होते हैं उनको रोगका भय रहता है रोगोत्पत्ति के होने से भोग नष्ट होजाते हैं । कुल स्त्री पुत्रादि कुटुंबमें लुब्ध होते हैं उनको चवने (मृत्यु) का डर है, कुटुंबका ग्रास मृत्यु कर जाती है जिससे वे विरहव्याकुल बन जाते हैं, जो सुवर्णरत्नादि धनमें लुब्ध हैं उनको नृप-राजाका भय है, नृप रुष्ट होकर द्रव्य हरण करनेसे दरिद्री बनते हैं, जो मौनपना चुप धारण कर बैठते हैं उनको दैन्यताका भय है, लोग दीन कहते हैं. जो तन-बल, धन-बल, जनबलमें मदस्य बनते हैं उनको शत्रुका भय है, शत्रु उनके बलका हरण कर निर्बल बनाते हैं। जो अपने शरीर के गौर वर्णादि रूपमें रच रहे हैं उनको जराका भय है, वृद्धावस्था प्राप्त हो रूपको नष्ट भ्रष्ट कर देती हैं, जो तर्क, व्याकरणादि शास्त्रविद्याके मद में छकते हैं उनको वादियोंका भय है, विद्वान् वाद द्वारा पराजय कर शरमिंदे बनते हैं, जो क्षमादि गुणके गर्वमें गर्विष्ट हैं उनको खल [मूर्ख ] का भय है, उनका मूर्ख उपहास्य कर चिडाते हैं, और जो