Book Title: Saddharm Bodh
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Nanebai Lakhmichand Gaiakwad

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Page 41
________________ [ ३७ ] चाटकर पीते हैं, और जो घास आहारी पशु हैं वे पानीको मुंह लगाकर पीते हैं। इसमें मनुष्य प्रार्णाके अंग मांसाहारी जैसे नहीं हैं। बिना शस्त्र व अग्निसंस्कार विना यह पाचन होता नहीं है । मांस भी अनेक रोग उत्पन्न करता है । विद्वान् अंग्रेज डॉक्टरोका कहना है कि, Starch Sugar ( स्टार्च-शुगर) नामका पदार्थ मांसमें नहीं होनेसे Scurvy (रक्तपित्ती) का रोग उत्पन्न होता है और "मिट फिवर” एक प्रकारका बुखार मांस भक्षण करनेसे आता है, इत्यादि विचारोंसे स्पष्ट मालूम होता है कि मनुष्य मांसाहारी नहीं है । जो प्राणी मांसाहारी हैं वे घास नहीं खाते हैं और घास आहारी हैं वे मांस नहीं खाते हैं। पशु होकर भी नियमका पालन करते हैं और मनुष्य नहीं करते हैं, उन मनुष्योंको मनुष्य किस प्रकार कहना! अर्थात् वे " अतो भ्रष्ट ततो भ्रष्ट " राक्षसरूप हैं। कितनेक कहते हैं कि-सीधा-निर्जीव मांस विकता हुआ ग्रहण करते हैं, हम हमारे हाथसे हिंसा

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