Book Title: Saddharm Bodh
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Nanebai Lakhmichand Gaiakwad

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Page 46
________________ [ ४२ । कषाय [क्रोध, मान, माया, लोभ ] रूपी पशुओंसे ज्ञानके वानों द्वारा किए हुए यज्ञ करो, तथा अश्वमेध सो मनरूप बकरेको और नरमेध सो कामरूप नरको उक्त प्रकार यज्ञ (हवन) करनेसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है । इत्यादि बोध सुनकरके प्राचीन वी राजाने पापयज्ञका त्याग करके धर्मयज्ञको स्वीकार किया। इससे ऐसा ज्ञात होता है शास्त्रमें जीववध करनेकी आज्ञा बिलकुल नहीं है, परंतु कितनेक लोग वेदकी श्रुतियोंका अर्थ पशुको अग्निमें जलानेका करते हैं । यह अर्थ जो सच्चा होता तो वर्तमानकालके हुए वेदके पारज्ञ स्वामी दयानन्दजी जैसे विद्वान्ने वेदकी श्रुतियोंका अर्थ क्यों न ऐसा किया ? इससे खुलासा जाना जाता है कि, रस गृद्धि लोगोंने स्वार्थसाधनके लिए अर्थ का अनर्थ कर डाला है। सुज्ञ मनुष्योंको प्राप्त बुद्धि द्वारा सत्यार्थका विचार कर जो सुशास्त्रोंसे मिलता सच्चा अर्थ हो उसको स्वीकार करना चाहिये, और भी वैष्णव लोग कहते हैं कि ईश्वरने

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