________________
[२.] मृगोष्ट्रग्वरमर्कटाखुसरीसर्पखगमक्षिकाः ।
आत्मनः पुत्रवत्पश्येत्, तैरेषामन्तरं कियत् ।। अर्थ-मृग, ऊंट, गद्धा, बंदर, चूहा, सर्प, पक्षी और मक्खी जैसे ही प्राणीको अपनी आत्मा तथा अपने पुत्रके समान जानना परन्तु किंचित् मात्र भी अंतर (जुदा ही) रखना नहीं। यही सच्चा धर्म है।
पुराणों के बनानेवाले व्यास ऋर्षीने १८ ही पुराणोंका सार फक्त आधे ही श्लोकमें कहा है.----
अष्टादशपुराणेषु । व्यासस्य वचन द्वय ॥ " परोपकारः पुण्याय । पापाय परपीडन" ॥
अर्थात्---परोपकार करना सो पुण्य है और दूसरेको दुःख देना सो पाप है । सब शाब्रोंका सारांश इतनेमें ही है। __ इस्लाम धर्मके अनुयायी मुसलमान लोगोंके परमेश्वरका नाम ही "रहमान रहिम" है, जिसका अर्थ होता है "दयालु ईश्वर" वे कभी भी हिंसा करनेकी दूसरोंको दुःख देनेकी आज्ञा (परवानगी) देंगे क्या ? नहीं कदापि नहीं ।
पैगंबर हजरत मोहंमद नबीसाहेबके खलिफा