Book Title: Saddharm Bodh
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Nanebai Lakhmichand Gaiakwad

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Page 31
________________ [ २७ ] हिंसक को दंड। यावन्ति पशुरोमाणि | पशुपातिषु भारत !॥ तावद्वर्षसहस्त्राणि । पच्यते नरके नराः ॥ ___-अनुशासनपर्व, ॥ अर्थात्-जिस पशुका जो वध करेगा उस पशुके शरीर पर जितने बाल होंगे उतने ही हजार वर्षतक उसको नरककी शिक्षा भोगनी पडेगी। स्वल्पायुर्विकलो रोगी । विचक्षुर्बधिरः खलु। वामनः पामरः षंढी । जायते स भवे भवे ॥ अर्थात्-हिंसाको करने वाला आगे को भवोभव में अल्पआयुषी, मूर्ख, रोगिष्ट, अन्धा, बहिरा, ठिंगणा, और कुष्टादि अनेक रोगों करके पीडित दुःखी होता है। एक जन्ममें की हुई हिंसा जन्मो जन्म में दुखदाता होती है । इसे कभी भूलना नहीं। क्षुद्र प्राणियोंका रक्षण। कितनेक अधर्मी लोग कहते हैं कि-युंका (ज्यूं) षट्मल बिच्छ, सांप वगैरा क्षुद्र दुःख देनेवाले प्राणीयोंको मारनेकी भगवान् की आज्ञा है । और वे ही यह कहते हैं कि भगवान्ने सृष्टी

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