Book Title: Saddharm Bodh
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Nanebai Lakhmichand Gaiakwad

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Page 8
________________ [१] विशेष कर पराधीन होने के कारण से तथा सत्संग के अभाव से वे केवल अपने पेट भरने के उद्योग मे अधिक कुछ नहीं कर सकते हैं। प्राप्त जन्मको प्रपंच में दुष्कृत्यमें लगा कर आयुष्य पूर्ण करते हैं ! और " आसा जहां वासा ” इस योग से जन्म मृत्यु के फन्दे में फंसते हैं । मनुष्य को वाचा शक्ति, स्वाधीनता, सत्संगति के योग्य, सद्ज्ञान, श्रवण करनेकी मनन करनेकी व निर्णय पूर्वक निश्चयात्मक बननेकी और उस मुजब दुष्कृत्योंका त्याग शुद्ध कृत्यको स्वीकार कर उसी प्रमाण वर्तने (चलने) वगैरा की शक्ति प्राप्त हुई है । यही अधिकता अन्य योनीसे मनुष्य जन्म में है। अधर्मी मनुष्य पशू से भी नीच है। दोहा-तवही जन्म में आवनो, होना ईश्वर दास । नहीं तो कुछ थोडी नहीं, श्वान शुक्रकी रास ।। प्राप्त जन्मका सार यह, पापपक न लगाय । अमोल कहे उत्तम वही, देवस्वरूप ओलखाय॥ इस सनुष्य जन्म को प्राप्त होकर परमेश्वर

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