Book Title: Saddharm Bodh
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Nanebai Lakhmichand Gaiakwad

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Page 12
________________ [<] वेश्या का भी त्याग किया नहीं 'न गुणो, 'स्वार्थ साधन को तथा बलवान् के सन्मुख गुणानुवाद किया होगा परन्तु निस्वार्थ बुद्धिसे परमेश्वर के व सत्पुरुषोंके गुणानुवाद किये नहीं. ' न धर्मः ' अहिंसा, सत्य, निर्ममत्व, ध्यान, मौन वगैरा पराधीनता से धारण किये होंगे परन्तु आत्माहित के लिये नहीं. इस प्रकार के मनुष्य का जन्म इस पृथ्वी पर " खानेको काल और भूमी पर भार इस कहावत प्रमाणें हैं। जंगल के हिरण ( मृग ) पशु जैसा है । तब हिरन का पक्ष धारण कर एक विद्वान् बोला: 35 स्वरे शीर्यं जने मांस, त्वचा च ब्रह्मचारिणं ॥ शंगं योगीश्वरे दद्यात्, मृगस्त्रीषु लोचने ॥ १ ॥ मृग से कस्तूरी उत्पन्न होती है वह अनेक पुण्य की कर्ता और सुगन्धी होनेके कारण से सुवर्ण से भी अधिक मूल्यवान् होती है, कित - नेक पापी लोग मृग के मांस को भी भक्षण करते हैं. मृग के चमड़े को पवित्र मान कर कितनेक तपस्वी बिछाते हैं, मृग के रंग की ध्वनि को मांग

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