Book Title: Saddharm Bodh
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Nanebai Lakhmichand Gaiakwad

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Page 13
________________ लिक मान कर योगीयों घरों घर फूंकते फिरते हैं और सुन्दर स्त्री की आंखोंको-कुरंगनयना, मृगाक्षी ऐसी उपमा देते हैं इत्यादि अनेक गुण के धारक मृग की उपमा उस अधम मनुष्यको देना योग्य नहीं। तब ज्ञानी बोले-"मनुष्यरूपेण गावश्चरंति" अर्थात्-अधर्मी मनुष्य गौ पशु के जैसा है. तत्र गौका पक्ष धारण कर विद्वान् बोला: तृणमपि दुग्धं धवलं, गोमयं गेहह्मण्डनं ॥ रोगप्रहारि मूत्रं, पुच्छं सुरकोटिसंस्थानं ॥२॥ तृण (घास) जैसी तुच्छ वस्तु खाकर दुग्ध समान अत्युत्तम पदार्थ देती है जिससे मक्खन, घी, आदि अनेक स्वादिष्ट पदार्थ बनते हैं। गाय के गोबरसे घर साफ होता है । गौमूत्रसे रोग शांत होते हैं तथा पुराणों में लिखा है कि गायके पूछमें ३३ करोड देवताओंका निवासस्थान है, ऐसे उत्तम प्राणीकी उपमा उस नीच पुरुषसे देना उचित नहीं है।

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