Book Title: Saddharm Bodh
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Nanebai Lakhmichand Gaiakwad

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Page 11
________________ [ ७ ] > किये नहीं, ' न दानं नाम कमाने के लिये लग्नादि ( विवाहादि ) सम्बन्ध में तथा मोज आनन्द में अपनी शक्ति से अधिक धन का खरच कर के आनन्द माना होगा, परन्तु धर्मोन्नति के लिये अनाथ अपंगे दुःखी प्राणी को पोषण के लिये कभी फूटी कोडी का भी दान दिया नहीं, 'न जपं' व्याधिग्रस्त [ बीमार ] हो कर, व संकट में फस कर भगवान् का नामस्मरण ( जप ) किया होगा, परन्तु सुख में कभी भगवान् को याद किया नहीं, 6 न शीलं, ' दरिद्रता रोग आदिक प्रसंग में ब्रह्मचर्य का पालन किया होगा, परन्तु श्रीमान् शक्ति मानू, आरोग्य सुदृढ शरीरी होकर परस्त्री तथा श्लोक--अन्नकंदत्यागं निद्रा, फल सेजं च मैथुनं ॥ व्यापारविक्रयं क्षीरं, काष्ठदंतं स्नानवर्जनं ॥ अर्ध-- १ अन्न, २ कन्द, ३ निद्रा, ४ फल, ५ शैय्या, ६ मैथुन ७ खरीदी, ८ बेचना, ९ मुंडन, १० काष्ट से दांत घर्षण, और ११ स्नान, इन ११ कामों का त्याग करे उसे एकादशीव्रत कहना | इलोक -- एकादशी अहोरात्रि, अम्बु त्यागी जे नरा । सिध्यंति द्वादश भव, न च संशय युधिष्टरा ॥ अर्थ - - धर्मराज ! जो एकादशी को पानी भी नहीं पीता है। वह द्वादश भव में सिद्ध होता है इसमें संशय नहीं करना ।

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