Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के भावना नामक अध्ययन में एवं उत्तराध्ययन के 32वें अध्याय में यथावत् रूप से उपलब्ध है।
उपर्युक्त आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि ऋषिभाषित में ऋषियों के उपदेश को सामान्यरूप से प्रामाणिकतापूर्वक ही प्रस्तुत किया गया है। यद्यपि इसमें मुख्य रूप से उनके आध्यात्मिक और नैतिक विचारों का ही प्रस्तुतीकरण हुआ है और उसके पीछे निहित दर्शन पर इसमें कोई बल नहीं दिया गया है। दूसरा यह भी सत्य है कि उनका प्रस्तुतीकरण या ग्रन्थ-रचना जैन परम्परा के आचार्यों द्वारा हुई है। अतः यह स्वाभाविक था कि उसमें जैन परम्परा में मान्य कुछ अवधारणाएँ प्रतिबिम्बित हो गयी हों। पुनः इस विश्वास के भी पर्याप्त आधार हैं कि जिन्हें आज हम जैन परम्परा की अवधारणाएँ कह रहे हैं, वे मूलतः अन्य परम्पराओं में प्रचलित रही हों। अतः ऋषिभाषित के ऋषियों के उपदेशों की प्रामाणिकता को पूर्णतः निरस्त नहीं किया जा सकता। अधिक-सेअधिक हम केवल इतना ही कह सकते हैं कि उन पर अपरोक्षरूप से जैन परम्परा का कुछ प्रभाव आ गया है। ऋषिभाषित के ऋषियों की ऐतिहासिकता का प्रश्न
यह एक सुस्पष्ट तथ्य है कि ऋषिभाषित में वर्णित अधिकांश ऋषिगण जैन परम्परा से सम्बन्धित नहीं हैं। उनके कुछ के नामों के आगे लगे हुए ब्राह्मण, परिव्राजक आदि शब्द ही उनका जैन परम्परा से भिन्न होना सूचित करते हैं। दूसरे देव नारद, असित देवल, अंगिरस भारद्वाज, याज्ञवल्क्य, बाहक. विदर, वारिषेण कृष्ण, द्वैपायन, आरुणि, उद्दालक, तारायण, ऐसे नाम हैं जो वैदिक परम्परा में सुप्रसिद्ध रहे हैं और आज भी उनके उपदेश उपनिषदों, महाभारत एवं पुराणों में सुरक्षित हैं। इनमें से देव नारद, असित देवल, अंगिरस भारद्वाज, द्वैपायन के उल्लेख ऋषिभाषित के अतिरिक्त सूत्रकृतांग, औपपातिक, अंतकृत्दशा आदि जैन ग्रन्थों में तथा बौद्ध त्रिपिटक साहित्य में भी मिलते हैं। इसी प्रकार वज्जीयपुत्त, महाकश्यप और सारिपुत्र बौद्ध परम्परा के सुप्रसिद्ध व्यक्तित्व हैं
और उनका उल्लेख त्रिपिटक साहित्य में उपलब्ध है। मंखलिपुत्र, रामपुत्त, अम्बड़ (अम्बष्ट), संजय (वेलट्टिपुत्र) आदि ऐसे नाम हैं जो स्वतन्त्र श्रमण परम्पराओं से सम्बन्धित हैं और इनके उल्लेख जैन और बौद्ध परम्पराओं में हमें स्पष्ट रूप से मिलते हैं। ऋषिभाषित के जिन ऋषियों के उल्लेख बौद्ध साहित्य में हमें मिलते हैं उस पर विस्तृत चर्चा प्रो. सी. एस. उपासक ने अपने लेख 'इसिभासियाई एण्ड पालि बुद्धिस्ट टैक्स्ट्स : ए स्टडी' में किया है। यह लेख पं. दलसुखभाई अभिनन्दन ग्रन्थ में प्रकाशित हुआ है। पार्श्व और 34 इसिभासियाई सुत्ताई