Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 13
________________ testuestestuesvesten वर्षांतप-आराधना विधि (GasteGOLARGOLG विधि से ही विधान प्रगट होता है। बीज में से ही वृक्ष प्रकट होता है। कोई कितना भी खोजे ईश्वर को बाहर में, आत्मा में ही परमात्मा प्रगट होता है। जैन समाज में वर्षीतप का बहुत महात्म्य है। इसे ऋषभदेव ॐ संवत्सर तप भी कहते हैं। प्रभु आदिनाथ को हुए असंख्य वर्ष व्यतीत हो गये, किन्तु प्रभु द्वारा सहज आचरित वर्षीतप साधना 2) आज भी उतनी ही जीवन्त व प्राणवान है। हजारों लाखों की व ॐ संख्या में श्रद्धालु भक्त प्रभु की स्मृति में अपनी शक्ति के अनुसार र वर्षीतप की आराधना करते हैं। - प्रभु आदिनाथ तो पूरे 400 दिन तक निर्जल निराहारी 10 रहे। किन्तु पंचमकाल में शरीर मे इतनी सामर्थ्य कहाँ ? प्रभु न महावीर ने इस काल में छ: मासी उत्कृष्ट तप बताया, वह भी कोई / विरले धीर-वीर ही कर पाते हैं। / अतः सामान्यतः एक दिन उपवास व एक दिन पारणा i) करके जो तप किया जाता है वह वर्षीतप के नाम से रूढ़ हो गया। _ आज भी इस अर्थ में वर्षीतप बहुत करते हैं, किन्तु तप२. विधि से अपरिचित होने से इतनी उत्कृष्ट तपस्या भी फलप्रद नहीं e eGQAGenergerGerated हो पाती। विधि से विधान प्रगट होता है। वर्षीतप साधना की भी सुव्यवस्थित विधि है। किन्तु उससे अनभिज्ञ साधक मात्र एक दिन उपवास व एक दिन पारणे को ही वर्षीतप समझ बैठे तो यह बहुत बड़ी भूल है। தலைலைலை 12

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