Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 40
________________ estesi ugestiegestuesitgeeste 5) व्यवहार देखकर हमारे हृदय के सैंकड़ों टुकड़े हो गये / हम समझ ( 2) नहीं पा रहे हैं कि आखिर इस सारे घटनाचक्र का अन्तरंग रहस्य क्या था? आप प्रभु के विशेष कृपापात्र बने, अतः हम आपसे ही र जानने के लिए यहाँ समुपस्थित हुये हैं। आप अनुग्रह करके कुछ5 बतायेंगे तो हम सैकड़ों जन्मों तक आपका उपकार नहीं भूलेंगे।" श्रेयांस कुमार ने सभी को यथास्थान बैठाकर शांतिपूर्वक शी कहा "प्रजाजनो! आपको निर्ग्रन्थ साधु का परिचय नहीं होने से र ही इतना सोचने के लिये बाध्य होना पड़ा / वस्तुतः इसमें आप सभी का कोई दोष नहीं है। अज्ञान दशा में हम वस्तुस्थिति समझ नहीं पाते / मैं भी अज्ञानी था, श्रमण धर्म की मर्यादाओं से अनजान था, ॐ किन्तु जैसे ही मैंने प्रभु को देखा तो पूर्वभव के संस्कार जागृत हो 5 गये। मैं स्वयं पूर्व जन्म में साधु था। मैंने साधुचर्या को समझा 2) और प्रभु को निर्दोष इक्षुरस स्वीकार करने को कहा-प्रभु ने आज * 400 दिन की तपस्या का पारणा किया है।" सज्जनों! भगवान् ऋषभदेव अब पहले की तरह सत्ताधारी राजा नहीं है। अब वे समस्त पापमय व्यापारों के व बाह्याभ्यंतर परिग्रह के त्यागी बन चुके हैं। प्रभु ने राग-द्वेष, मोह-विषयविकारादि सभी वैभाविक भावों का परिहार कर दिया है फिर वे कर किसलिये आप द्वारा प्रदत्त हाथी, घोड़े, मणि-माणिक्यादि तथा 8) सुन्दरी कन्याओं को स्वीकारेंगे? प वे दयालु, वीतरागी प्रभु सभी को अभय प्रदान करने वाले हैं, वे राग-द्वेष तथा मोह-माया प्रपंचों से सर्वथा दूर हैं। निर्ग्रन्थ 6 भिक्षुक होने से ऐषणीय प्रासुक व कल्पनीय आहार ही ग्रहण करते Get Geeta GeoGeegesses

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