Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 88
________________ MOODLOOggen a) प्रलयकाल पवन से प्रेरित, अग्नि प्रचण्ड हो जल रही, ह दावानल भी भभक रहा हो, चिनगारियां ऊंची उछल रही। समूचे विश्व को मानो निगलने, आतुर हो अभिमुख आती, तव कीर्तन की जलधारा ही, चंदन सम शीतलता बरसाती।।४०।। gestoestige लाल नेत्र और कंठ भी नीला, गहरा काला डरावना है, क्रोधोन्मत्त हो फुकार रहा, विषधर महाभयावना. है। नाम स्मरण रूपी नागदमनी, जिसके अन्तर्ह दय में है, भक्त का नहीं बिगाड़ सकेगा, चाहे नाग कितना ही निर्दय है।। 41 / / PAPPAPPAPP हाथियों की गर्जना और हि नहि नाते घोड़े की, ल भूपति सिंह नाद करते, हो परीक्षा निज शक्ति की। दिवाकर की शिखाओं से; ज्यों क्षण में अंधेरा नष्ट हो, प्रभु नाम कीर्तन से विरोधी सैन्यबल भी ध्वस्त हो।। 42 / / जिस युद्ध में बरछी भाले, हाथियों के मस्तक करें विदीर्ण, बहती रक्त की नदियाँ है, सैनिक कटते ज्यों वस्त्र जीर्ण। होगी जय पराजय किसकी, पता लगाना मुश्किल है, चरण-कमलों के आश्रित हो, भक्त सदा ही अविचल है।। 43 / / toestesgesorgenoeg प्रचण्ड पवन से क्षुब्ध सरोवर, मगर मलयादि ऊंचे उछल रहे, वाडवाग्नि अलग से धधक रही है, समुद्री जल जन्तु भी मचल रहे। तूफानी जल तरंगों में, जहाज जिसका फंस गया हो, श्रद्धा सहित स्मरण मात्र से, उसने तट को पा लिया अहो।। 44 / / வை

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