Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 86
________________ GeegeskosegecgerGeeta 1 भव्यजनों के मन-मयूर तब, श्री चरणों में पुलकित होते हैं। 5 2) स्वर्णगिरी के उभय पार्श्व में, ज्यों निर्मल झरने झरते हैं, (, चंद्रकांति सम मन को मोहते, जब वे चामर ढुलते हैं।। 30 / / प्रभो! आपके मस्तक ऊपर, तीन छत्र की शोभा न्यारी, चंदा जैसी मनहर कांति, तेज सूर्य से भी अतिशय भारी। 1) पंचवर्णी रत्न मणियों की, झालर शोभा पाती है , 2 त्रैलोक्यनाथ की तीनों लोकों में, अतिशय महिमा गाती है ||31 11 Speeone9eseROSAROKAR गंभीर नादमय देवदुंदुभि, जब आकाश में बजती हैं , दसों दिशा में सद्धर्म प्रकाशक, प्रभु की जयकार गुंजाती है। 1) तीन लोक के भव्य जीवनों को, बुला रही हो तेरे पास, अथवा यश प्रसारित करती, सबके मन में भरती विश्वास।। 32 / / bestietoestetietoetstegetidores कल्प-वृक्ष के दिव्य पुष्पों की, गंधोदक वर्षा मनहारि, मन्दार सुन्दर और नमेरू, पारिजात बरसते सुपारि / पंचवर्णी उर्ध्व मुखी हो, वायु से मन्द सुवासित है / मानो, दिव्य वचन ही प्रभु के, पुष्प रूप में प्रसारित है।। 33 / / स्फटिक सिंहासन पर विराजित, भामण्डल का दिव्य प्रकाश, a) दिव्य तेज के सम्मुख उसके, द्युतिमान का भी होता है हास। संख्यात सूर्यों का तेज चमकता, फिर भी आतप नहीं करता है, शशिमय सौम्य सदा निराला, भव भव का ताप भी हरता है।। 34 / /


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