Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 84
________________ Geegesdeegeeseseges सर्व ओर से अवकाश पाया, जो ज्ञान आप में आलोकित है, मिथ्यादृष्टि अन्य देवों में, वैसा कहाँ प्रकाशित है। ज्योतिर्मय दिव्य प्रकाश युक्त, अनमोल मणियों का जो आदर है, यत्र-तत्र बिखरे कांच टुकड़ों का, क्या वैसा ही समादर है।। 20 / / हरिहरादिक देवों को देखा, यह आत्महित में अच्छा ही हुआ, हे नाथ! चंचलता रही न किंचित् क्योंकि मन पूर्ण संतुष्ट हुआ। भवान्तर में भी उनके दर्शन, मन को कभी न लुभायेंगे, एक बार जो दर्शन कर ले, वे आपके ही बन जायेंगे।। 21 / / 5) सैकड़ों स्त्रियाँ इसी जगत में, जन्म देती हैं पुत्रों को, 2) किन्तु आप सदृश पुत्र की, जन्म दात्री मरुदेवी माता वो। 2 दशों दिशाएं धारण करती, सहस्र रश्मियां प्रमुदित होकर, र पूर्व दिशा ही जन्मदात्री है, अंशुमाली की पावन हितकर / / 22 / / GessesGetGersiesesGeeges sengere. हे मुनिन्द्र! ऋषि मुनि आपको, योगेश्वर परम पुरुष माने, अंधकार नाशक रहित वे, आदित्य समान भी तुम्हें जाने। मृत्यु-भय को जीता आपने, सम्यक् उपलब्ध हुआ आतम, शिवपद दाता शिवमार्ग विधाता जिससे बनते हैं परमातम।। 23 / / हे प्रभो! अव्यय अचिन्त्य हो, असंख्य आद्य भी आप ही हो, 1) ब्रह्मा ईश्वर गुणयुक्त अनंत हो, अनंग विजित भी आप ही हो। योगेश्वर और विदित योग से, एक अनेक स्वरूप आप ही हो, संत पुरुषों की वाणी में, निर्मल ज्ञान अरूपी आप ही हो।।24।।

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