Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 82
________________ Letoestisesti esigentes त्रिभुवन भूषण! भूतनाथ! हो, फिर आश्चर्य की बात ही क्या ? जो आपको ध्याता है, पा जाता जीवन फिर से नया। भूतल पर भी देखा मैंने, सेवक स्वामी से बल पाता है, वह स्वामी ही क्या सेवक को, जो नहीं निजतुल्य बनाता है।। 10 / हे नाथ! आपको देखा जिसने, निर्निमेष दृष्टि बल से, संतुष्ट नयन वे जीव फिर, नहीं देखते अन्य विकल से। सौम्य-सुधा सम निर्मल मधुरतम, दुग्ध पिया क्षीर सागर का, कभी भुलकर भी पियेगा, नहीं किसी लवणाकर का।।1 1 / / Keeeeeeeeee907 जिन शांतरुचि परमाणु से, तव काया का निर्माण हुआ, 1) त्रैलोक्य ललाम अभिराम रूप को, देख भव्यों का कल्याण हुआ। परमाणु इतने ही जगति में, रूप अन्य दिखता न कोई। मन-मंदिर में भव्यों के विराजित, सौम्य-मूर्ति आठों याम सोई।। 1 2 / / GGLAGTAGLeGuiceGGGLEGeet ज्योतिर्धर मुखचंद्र आपका, सुर असुर नेत्रों को हरे, उपमाएं त्रिजगती की सारी, एक मात्र तुम्हीं को वरे / कलंक युक्त है चंद्रबिंब भी, एक मात्र राशि में विचरे, दिन में पलाश-पत्र सा फीका, चंद्र उपमा भी नाहि धरे / / 1 3 / / पूर्णिमा का चंद्र सुनिर्मल, संपूर्ण कलाएं खिल रही, 1) सुभ गुण-मणि आपकी भी, त्रिभुवन उलंघी झिल रही। 2 अनंत गुण जो एक मात्र ही, अर्पित सारे जगदीश्वर के, & कौन रोक सकता है उनको, विचरण करते स्वेच्छा बल से।। 14 / /


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