Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 57
________________ gerategoriessagesgender असि कर्म-तत्पश्चात् प्रभु ने असि कर्म अर्थात् शस्त्रास्त्रों 2) की कला में लोगों को निपुण बनाया। इसके पीछे उनका लक्ष्य थानिर्बल अपने हकों की रक्षा कर सकें / उन्होंने एक ऐसे वर्ग को तैयार किया जो शस्त्रास्त्र चलाने की कला में निपुण बना / उस वर्ग र को समाज की सुरक्षा का दायित्व सौंपा गया। कृषि, मसि और असि रूप इन तीन सूत्रों को पाकर वह युग सुखी और सम्पन्न हो गया। प्रभु ऋषभदेव को उस युग ने अपनी Ma आस्था का केन्द्र स्वीकार कर लिया था। लोग उन्हें बाबा कहकर * पुकारते थे। जब भी वे किसी नवीन समस्या में दौड़कर बाबा के र पास पहुंचते और उनसे उस समस्या का स्थायी समाधान पाकर / सन्तुष्ट हो जाते थे। ऋषभदेव ने अपने पुत्र-पुत्रियों के सहयोग से विभिन्न कलाओं (, से तयुगीन मानव-समाज को अलंकृत किया था। प्रभु ने अपने बड़े पुत्र भरत के सहयोग से पुरुष की बहत्तर कलाओं का ज्ञानर शिक्षण लोगों को सिखाया। उन्होंने लिपि के सूत्र दिए, जिन्हें दूर आधार बनाकर ब्राह्मी ने अठारह प्रकार की लिपियाँ सृजित की , 1) और उनका प्रचार-प्रसार किया। अपनी छोटी पुत्री सुन्दरी को प्रभु (S R ने गणित ज्ञान के सूत्र दिए तथा स्त्री की चौसठ कलाएं सिखाई। 3 सुन्दरी ने गणित ज्ञान लोगों को सिखाया साथ ही उसने स्त्रियों को र चौसठ कलाएं भी सिखाई। 5 प्रभु ऋषभदेव ने कर्म के अनुरूप लोगों को वर्गों में विभक्त G कर दिया / कृषि और मसि कर्म में निपुण लोगों को वैश्य नाम दिया गया। असि कर्म अर्थात् जनसमाज की रक्षा करने वाले समूह को क्षत्रिय नाम दिया / तथा जो लोग न कृषि कर सकते थे तथा न र शस्त्रास्त्र की कला में निपुण थे, उन्हें सेवा-सफाई का कार्य दिया / geskgeetergeimegesignstagesGovers

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