Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 76
________________ geskgeesegossesses चलकर स्तूपकार चिह्न शिवलिंग के रूप में लोक में प्रचलित हो (6 4 गया हो। जैन परम्परा की तरह वैदिक परम्परा के साहित्य में भी ( R) ऋषभदेव का विस्तृत परिचय उपलब्ध है। बौद्ध साहित्य में भी 6 भगवान ऋषभदेव का उल्लेख मिलता है। पुराणों में ऋषभ के बारे घर में लिखा है कि ब्रह्माजी ने अपने से उत्पन्न अपने ही स्वरूप 5) स्वायंभुव को प्रथम मनु बनाया / स्वायंभुव से प्रियव्रत, प्रियव्रत से (8 1) आग्नीङफ आदि दस पुत्र उत्पन्न हुए| आग्नीघ्र से नाभि और (, VR नाभि से ऋषभ उत्पन्न हुए। नाभि की प्रिया मरुदेवी की कुक्षि से ॐ अतिशय कांतिमान पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम ऋषभ रखा गया। ऋषभदेव ने धर्मपूर्वक राज्य शासन किया तथा विविध यज्ञों से का अनुष्ठान किया। फिर अपने पुत्र भरत को राज्य सौंपकर 2) तपस्या के लिए पुलहाश्रम चले गए। जब से ऋषभदेव ने अपना 8 ९राज्य भरत को दिया तब से यह हिमवर्त लोक में भारतवर्ष के नाम 4 से प्रसिद्ध हुआ। श्रीमद्भागवत् को विष्णु का अंशावतार माना गया है। उसके | अनुसार भगवान नाभि का प्रेम सम्पादन करने के लिए महारानी। 1) मरुदेवी के गर्भ से सन्यासी वातरशना-श्रमणों के धर्म को प्रकट करने के लिए शुद्ध समन्वय विग्रह से प्रकट हुए। ऋषभदेव के शरीर में जन्म से ही वज, अंकुश आदि विष्णु के चिह्न थे। उनके र सुन्दर शरीर, विपुल तेज, बल, ऐश्वर्य, पराक्रम और सुखीरता के र 6) कारण महाराज नाभि ने उन्हें ऋषभ (श्रेष्ठ) नाम से पुकारा। श्रीमद्भागवत् में ऋषभदेव को साक्षात् ईश्वर कहा है। इन्द्र, Mar द्वारा दी गई जयन्ती कन्या से उनके पाणिग्रहण और उसके गर्भ ॐ से उनके ही समान सौ पुत्रों के उत्पन्न होने का उल्लेख है। ब्रह्मावर्त म पुराण में लिखा है कि उन्होंने अपने पुत्रों को आत्म ज्ञान की शिक्षा हGLAGGAG GGALSAGARGOST

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