Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 70
________________ Geegeegssegement दे सकता हूँ जो कभी नहीं छिनेगा / उस साम्राज्य को कोई नहीं छीन 2) सकेगा।" र प्रभु ऋषभदेव ने अठानवें पुत्रों को उपदेश दिया। उन्होंने उन्हें / 5 उनके आत्मवैभवसम्पन्न साम्राज्यों का ज्ञान प्रदान किया। सभी अठानवें कार भाइयों ने प्रभु का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया। उग्र साधना साधकर सभी ने मोक्षलक्ष्मी का वरण किया और एक ऐसा साम्राज्य पा लिया जो सदा-16 1) सर्वदा के लिए निष्कण्टक है, नहीं छिनने वाला है। . .. दो भाइयों का युद्ध- बाहुबली को भी भरत का संदेश मिला कि वे उनकी अधीनता स्वीकार कर लें। बाहुबली प्रकृष्ट स्वाभिमानी र तथा प्रचण्ड आ बलशाली थे। उन्होंने संदेशवाहक दूत से कहा3) "दूत! अपने महाराज भरत को कह दो कि बाहुबली अपने बड़े भाई ड श्री भरत का तो सम्मान करता है और उनके कदमों में झुकने को र कर तैयार है, परन्तु सम्राट भरत का मुझे कोई भय नहीं है। मैं उनकी आधीनता कदापि स्वीकार नहीं करूंगा।" .. र भरत के पास बाहुबली का संदेश पहुंचा। भरत विक्षुब्ध हो Ka उठे। विशाल सेना के साथ उन्होंने तक्षशिला की ओर प्रस्थान कर दिया। सूचना पाकर बाहुबली भी अपनी सेना के साथ युद्ध के पर मैदान में आ डटे। भयानक नरसंहार संभावित था। मध्यस्थों ने बीच-बचाव करते हुए दोनों भाइयों को परस्पर शक्ति-परीक्षण के लिए कहा। Ma भरत और बाहुबली ने इस सुझाव को मान लिया। ॐ ध्वनियुद्ध, दृष्टियुद्ध, मुष्टियुद्ध, बाहुयुद्ध, तथा दण्डयुद्ध ये पांच प्रकार के युद्ध भरत और बाहुबली के मध्य लड़े गए। इन। ) पांचों युद्धों में बाहुबली ने भरत को पछाड़ दिया। भरत अपनी 8 1) पराजय से विक्षुब्ध हो उठे। औचित्य-अनौचित्य का विचार किए

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