Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 68
________________ estetiese eingerie कान्ति से आलोक बिखर रहा था। माता मरुदेवी ने हाथी पर बैठे ( हुए ही दूर से अपने पुत्र ऋषभदेव की यह महाऋद्धि देखी। उसका तन-मन रोमांचित हो उठा। उसने विचार किया- मेरी चिन्ताएँ तो। &ऋषभ के लिए निर्मूल थीं। वह तो देवपूजित देवाधिदेव है। मैं अपने 3 र मोह के कारण ही व्यर्थ चिन्तित होती रही। मोह ही वास्तव में आत्मा 5) को दुःखी करने वाला है। "मरुदेवी भगवई सिद्धा" అఅఅఅఅఅఅఅఅఅఅఅఅఅఅఅఅఅఅఅలలు सिद्धगति को प्राप्त मरुदेवी माता के दर्शन करते भरतचक्री माता मरुदेवी आत्मचिन्तन में निमग्न थी। उसके भाव शुद्ध / से शुद्धतर होते चले गए। और उसे हाथी के हौदे पर बैठे हुए ही है। केवलज्ञान हो गया। अन्तिम श्वास में सर्वज्ञता से साक्षात्कार करके उसने देह का परित्याग कर दिया। प्रभु ऋषभदेव ने उद्घोषणा की मरुदेवा भगवई सिद्धा। प्रभु ऋषभदेव ने अपना प्रथम वचन दिया। इस अवसर्पिणी र काल के मनुष्य ने प्रथम बार धर्म को अनुभव किया। हजारों लोगों 2 ने मुनि-जीवन स्वीकार किया। हजारों स्त्रियाँ साध्वी बनीं / महाराज

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