Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 69
________________ STARPROOTOS esteettiset 5) भरत के ज्येष्ठपुत्र ऋषभसेन प्रभु के प्रथम शिष्य बने तथा ब्राह्मी 1) प्रथम श्रमणी बनी। श्रावक व श्राविका संघ की स्थापना भी हुई। प्रभु के अठानवें पुत्रों की प्रवज्या- विश्व की समुचित व्यवस्था के लिए महाराज भरत ने समग्र विश्व समुदाय को एक शासन सूत्र में बांधने का विचार किया। वे दिग्विजय के लिए निकले। इसमें उन्हें साठ हजार वर्ष लगे। भरत अपनी राजधानी लौटे। सुदर्शन चक्र आयुधशाला के द्वार पर आकर ठहर गया। सेनापति ने भरत को सुदर्शन चक्र की आयुधशाला के द्वार पर अवस्थिति की सूचना दी। भरत विचारमग्न हो गए। वे जानते थे कि जब तक एक भी राजा उनकी आधीनता स्वीकार न करेगा, तब तक सुदर्शन चक्र आयुधशाला में प्रवेश नहीं करेगा। सेनापति ने कहा-"महाराज! पूरे विश्व ने आपकी आधीनता स्वीकार कर र ली है, परन्तु आपके निन्यानवें भाई अभी भी स्वतंत्र प्रदेशों के शासक हैं।'' भरत को बात जंच गई। उन्होंने अपने सभी भाइयों को उनकी अधीनता स्वीकार करने के लिए कहा। ऐसा न करने पर युद्ध की चेतावनी दी। बाहुबली के अतिरिक्त शेष अठानवे भाई भरत के प्रबल पराक्रम का सामना नहीं कर सकते थे। वे भरत की पराधीनता भी स्वीकार करना नहीं चाहते थे। वे निराश होकर अपने पिता प्रभु ऋषभदेव के चरणों में पहुंचे और बोले-"पूज्य पितृदेव! आपने हमें स्वतंत्र राज्य दिए थे, परन्तु भाई भरत हमें पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ना चाहते हैं। हम क्या करें ? हमें मार्गबोध दो।" भगवान् ऋषभदेव ने कहा-'भव्यात्माओं! बाहर के साम्राज्य 5) सदैव अस्थिर रहते हैं। छिन जना ही इनकी नियति है। इन राज्यों ( की तो मैं रक्षा नहीं कर सकता हूँ / हाँ, तुम्हें ऐसा साम्राज्य अवश्य GSAGARGESARGHAGRLSAGARGLEGeoGRLS

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