Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 53
________________ fugeestesgegeten 5) सौधर्मेन्द्र प्रभु के दर्शनों के लिए आए / उनके हाथ में एक इक्षुदण्ड ( 1) था। शिशुस्वरूप प्रभु ऋषभ ने बालसुलभ चंचलता दिखाते हुए इन्द्र Pah के हाथ से वह इक्षुदण्ड ग्रहण कर लिया। इन्द्र कृतकृत्य हो उठे। उन्होंने देखा-बालक ऋषभ उस इक्षुखण्ड को चूसने का यत्न कर रहा है। इन्द्र ने घोषणा की- 'यह बालक इक्षुप्रिय है अतः इसके वंश 57 का नाम इक्ष्वाकु वंश प्रसिद्ध होगा। इस प्रकार प्रभु का वंश 1) इक्ष्वाकुवंश के नाम से विख्यात हुआ। यौवन और विवाह –ऋषभदेव युवा हुए / उनका विवाह उनकी सहजाता सुमंगला से सम्पन्न हुआ। उस युग में बहुविवाह-प्रथा र नहीं थी। सर्वप्रथम प्रभु ऋषभ ने ही बहुविवाह-प्रथा का सूत्रपात 6 किया। इसके पीछे एक घटना थी। एक यौगलिक कन्या थी१) सुनन्दा। उसके माता-पिता तथा सहजाता मर चुके थे। वह अकेली (S जंगलों में भटकती हुई घूम रही थी। एक दिन माता मरुदेवी ने उसे र देखा तथा उसका परिचय पूछा | उसकी एकाकी दशा पर करुणा होकर माता उसे अपने साथ ले आई और पुत्र ऋषभ के साथ-साथ उसका पालन-पोषण भी करने लगी। सुनन्दा ऋषभ के साथ ही जवान हुई। अतः उसका विवाह भी ऋषभ के साथ ही सम्पन्न किया गया। उस युग में किसी पुरुष द्वारा किए गए दो विवाहों की यह प्रथम घटना थी। .. सन्तान- प्रभु ऋषभदेव की पत्नी सुनन्दा ने एक पुत्र और H) एक पुत्री को जन्म दिया। पुत्र का नाम बाहुबलि और पुत्री का नाम (6 सुन्दरी रखा गया। प्रभु की दूसरी पत्नी सुमंगला ने भरत आदि 2 निन्यानवे पुत्रों और ब्राह्मी नामक एक पुत्री को वे जन्म दिया। इस र प्रकार प्रभु के सौ पुत्र तथा दो पुत्रियाँ हुई। भाइयों में सबसे बड़े भरत थे और बाहुबलि दूसरे नम्बर पर थे। GeSARAGeLSAGARGALSAGESGRLSHRESSGRLDG Geet

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