Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 51
________________ Geegeegeegeeaseetergension वे अपनी शय्या पर उठ बैठीं। उनका तन-मन निर्भार होकर अनन्त १प्रसन्नता से परिपूर्ण हो उठा था। उन्होंने अपने पति नाभिराय को 2 जगा कर उन्हें अपने अद्भुत स्वप्नों के बारे में बताया। स्वप्न-चर्चा सुनकर महाराज नाभिराय बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने 2 डू अपनी बुद्धि की कसौटी पर उस स्वप्न-श्रृंखला को कसते हुए उद्घोषणा की- देवी! तुम्हारी कुक्षी में जगत्त्राता पुण्यशाली जीव 1) अवतरित हुआ है। वह अपने पुण्य-प्रभाव से जगत में फैल रही। 2 अराजकता को मिटाकर नवीन पुण्य-सृष्टि का संस्कर्ता होगा। जगत में अब पुण्य का मंगल प्रभात होने वाला है और इस प्रभात की 2 र जन्मदात्री प्राची होने का सौभाग्य तुम्हें प्राप्त होगा। माता मरुदेवी के हर्ष का ठिकाना न रहा / वह प्रमुदितमना बनीति श्री अपने गर्भस्थ पुण्यशाली आत्मा का पालन-पोषण करने लगी। கை Ageeseedgesegesseges "मरुदेवी मैय्या ने देखे चौदह स्वपने" ைைக

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