Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 49
________________ me te te toegestaan 6) सकते थे। परन्तु अभावजनित भूख का उनके पास समाधान न था। (द लोग परस्पर झगड़ते विवाद कुलकर के पास पहुंचता। कुलकर उनसे भविष्य में न लड़ने के लिए कहते / इस पर, लोगों का उत्तर होता- आप भोजन का प्रबन्ध कर दीजिए, हम नहीं लड़ेंगे। महाराज नाभिराय के पास इस समस्या का समाधान नहीं था। वे स्वयं को इस दायित्व से मुक्त करना चाहते थे। ऐसे समय में प्रभु ऋषभदेव का जन्म हुआ था। पूर्वभव- प्रभु ऋषभदेव के तेरह भवों का वर्णन प्राप्त होता है। 5 तेरह भव पूर्व, प्रभु महाविदेह क्षेत्र के क्षितिप्रतिष्ठनगर के संपन्न र सार्थवाह के रूप में थे। उनका नाम था-धन्ना सार्थवाह / वे व्यापार 0 के लिए दूर देशों में जाते थे। एक बार वे व्यापार के लिए विदेश जाने वाले थे। उन्होंने पर नगर में घोषणा कराई कि जो भी व्यक्ति अर्थोपार्जन के लिए उनके र साथ जाना चाहे, वे उसकी आने-जाने की समुचित व्यवस्था करेंगे 7 और उसका खर्च वहन करेंगे। यह घोषणा सुनकर अनेक लोग सार्थवाह के साथ चलने को उद्यत हो गए। उस समय, आचार्य धर्मघोष भी क्षितिप्रतिष्ठनगर में विराजित पर थे। वे दूर देश में स्थित बसंतपुर नगर में जाना चाहते थे। लेकिन र बीच में सैकड़ों कोस लम्बा वन पड़ता था। उन्होंने भी इस सार्थ के र साथ यह यात्रा तय करने का मन बना लिया। यात्रा प्रारंभ हुई। सैकड़ों लोगों का भोजन बनता था। उसमें से कल्प्य (शास्त्र-सम्मत) आहार को मुनि जन ग्रहण कर लेते थे। और धन्ना सार्थवाह का भी मुनियों से परिचय हुआ। मुनियों की कठिन र र चर्या और उत्कृष्ट साधना को देखकर उसका हृदय उनके प्रति आस्था से भर गया। वह प्रतिदिन मुनियों के निकट बैठता, धर्मचर्या TOTROLORSTARS syetuestionstigestiegeget estet

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