Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 38
________________ Ostegesoes 1) अखण्ड धारा प्रवाहित करने लगे। - इस अनिर्वचनीय आनन्द को लूटने के लिए असंख्य देवी, देवता, मानव बालक-बालिका तथा तिर्यंच पशु-पक्षी वहाँ उपस्थित & हो गये। जय-जय नाद से दिशाएँ गूंज उठी। देवताओं ने 'अहोदानं' र 'अहोदानं' की घोषणा की। आकाश से देवी-देवताओं के द्वारा i) अनवरत पंचदिव्यों स्वर्णमुद्रा, वस्त्र पंचवर्णी पुष्प वसुधा की वृष्टि 1) दिव्यध्वनि की तब तक होती रही जब तक श्रेयांसकुमार एक के और बाद एक कलश उठा उठाकर इक्षुरस की अखंड धारा बहाते रहे। र इक्षुरस के एक सौ आठ कलशों से तृप्त हो जाने के बाद प्रभु ने 1अपने दोनों हाथों को समेट लिया। श्रेयांसकुमार ने प्रभु की पदरज श्रद्धा से अपने मस्तक पर ॐ लगाई। प्रभु ने पूर्ववत् ही मौन भाव से जंगल की ओर प्रयाण कर दिया। उस दिव्य विभूति की शान्त, दांत, गम्भीर मुखमुद्रा से सभी 5) बहुत प्रभावित हुए / श्रेयांसकुमार बार-बार अपने भाग्य की सराहना श्रा करने लगे। और सभी लोग अपनी अलग-अलग मंडलियाँ बनाकर श्रेयांस र राजकुमार के पुण्य की सराहना कर रहे थे।''धन्य है श्रेयांस राजा जिन्होंने इक्षुरस के दान से भवोभव की बाजी जीत ली।" धन्य है a) प्रथम दानी श्रेयांस राजकुमार। वैशाख शुक्ला तृतीया का दिन इक्षुरस के दान से अमर हो * गया। घर-घर में मंगलोत्सव मनाया गया। गली-गली जय जयकारों से गूंजने लगीं। लोग श्रेयांसकुमार के दान की सराहना करते हुए अघाते नहीं थे। धन्य है प्रथम दानी श्रेयांस कुमार और धन्य है कृपावतार भगवान् ऋषभदेव / भगवान ऋषभदेव वर्षीतप का पारणा करने के बाद विहार र etige gestiges

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