Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 37
________________ stroesoestetig sty POSTERATORS festgeste अहोभाग्य हैं कि देवाधिदेव त्रिलोकीनाथ आपके पितामह श्री ऋषभदेव ( 1) इस भूमण्डल पर अकिंचन भाव से विचरण करते हुए हमारे पुण्य (5 कोष को सफल करने के लिए हमारी नगरी में पधारे हैं। जनर समूह प्रभु के स्वागतार्थ उमड़ रहा है।" र सेवक के आधे शब्द तो मुँह में रह गये-" श्रेयांसकुमार के 3) साथ सारे राजदरबारी जैसे थे वैसे ही अविलंब उठ-उठकर दि शी राजमार्ग की ओर बढ़ने लगे।" श्रेयांसकुमार ने प्रथम बार इस दशा में अपने पितामह को र देखा तो वे प्रभु के चरणों में गिर पड़े, आँखों से बहती हुई अश्रुधारा Y मानो चरणाभिषेक कर रही थी। उत्तरीय वस्त्र से प्रभु के चरणों को पोंछकर वे पुनःपुनः प्रभु की आदक्षिणा–प्रदक्षिणा व वन्दनाॐ नमस्कार करने लगे। बार-बार चरण-वन्दना करने के पश्चात् श्रेयांस ने तप-तेज से देदिप्यमान किन्तु अन्न-पाणी के अभाव में , एकंदम क्षीणकाय प्रभु को देखा। जातिस्मरण ज्ञान होते ही उन्हें कि अपने कर्त्तव्य का भान हो आया / पारणा कराने के उद्देश्य से वे और सम्मानपूर्वक प्रभु को राजमहल में ले आये। कहा जाता है-'शुभकार्य शुभभावों का अनुसरण करते हैं। पुण्य प्रबल हो तो, अनुकूल साधन सहज ही उपलब्ध हो जाते हैं। कृषकों ने आज बड़े ही मनोयोग से इक्षुरस के सैकड़ों घड़े भर लिये और खुशी-खुशी महाराज को समर्पित करने आ पहुँचे / श्रेयांसकुमार र ने बयालिस दोषों से रहित विशुद्ध इक्षुरस देखा, तो प्रभु को उसे / 6) ग्रहण करने की भावभीनी विनती की। "हे परम कृपालु देव! यह एकदम निर्दोष इक्षुरस आप 12 ग्रहण कीजिये।" 5 निष्परिग्रही प्रभु ने अपना करपात्र मुँह को लगा दिया। " श्रेयांस कुमार बड़े ही भावों से प्रभु के करपात्र में इक्षुरस की g gesteiger

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