Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 34
________________ Registergestaegessageskgesterest चतुर्थ अध्याय वैशाख शुक्ला तीज का सूरज मानो अक्षययश का लाभ 5 लूटने को ही उदित हुआ था। हस्तिनापुर के भाग्योदय का शुभ दिन था। हवा की भाँति अप्रतिबद्ध विहारी प्रभु आदिनाथ अपने पवित्र चरण-कमलों से पृथ्वी को सुशोभित करते हुए हस्तिनापुर पधारे। महाराजा बाहुबली के पौत्र व सोमप्रभ राजा के पुत्र श्रेयांस राजा हस्तिनापुर की राज्य व्यवस्था को संभालते हुए सुखपूर्वक रह र रहे थे। श्रेयांसकुमार रात्रि में अर्धसुप्तावस्था में एक स्वप्न देखकर जागृत हुए। रात्रि में देखे स्वप्न पर वे पुनः पुनः विचार करने लगे। श्री "मैं श्यामल बने हुए स्वर्णगिरि को दूध से भरे घट से 1 अभिषिक्त करके उज्जवल बना रहा हूँ।" श्रेयांस कुमार शांतचित्त से सोच रहे हैं-"कौनसा स्वर्णगिरि है, जिसे मैं दूध से अभिषिक्त 1) कर रहा हूँ?" गहन चिन्तन के बाद भी वे इस प्रतीकात्मक स्वप्न 2 का अर्थ समझ नहीं पाये। इधर उसी रात में सुबुद्धि श्रेष्ठि ने भी एक स्वप्न देखा / कि-" श्रेयांसकुमार ने सूर्य से निसृत सहस्त्रों किरणों को पुनः सूर्य है। 5) में प्रतिष्ठित किया है। जिससे वह और अधिक प्रकाशमान हो उठा Lettisesti tuomiogenesisgere सोमप्रभ राजा ने भी श्रेयांसकुमार से सम्बन्धित एक स्वप्न ॐ देखा-' श्रेयांसकुमार के सहयोग से अनेक शत्रुओं द्वारा सर्वतः घिरे हुए राजा ने विजयश्री प्राप्त की।" / - सभी दरबारियों के साथ श्रेयांसकुमार, सुबुद्धि श्रेष्ठी तथा र राजा सोमप्रभ तीनों स्वप्न फलादेश पर विचारमग्न थे। லைமைதை

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