Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 24
________________ అఅఅఅఅఅ ఆ Lesestoesoesteties / सदृश रसमग्न होकर नृत्य कर रही थी। उसका प्रत्येक अंग थिरक 5 रहा था। लय ताल के साथ उसके अंगों का स्फुरण व संचालन म) अद्भुत व दर्शनीय था। तभी अचानक आयुष्य समाप्त हो जाने से 2) नीलांजना के अंगों का स्पंदन रुक गया। शकेन्द्र पहले से ही ( / सावधान थे। उन्होंने तत्क्षण अविलंब नीलांजना के स्थान पर उसी ॐ नृत्यमुद्रा में अन्य देवी को खड़ा कर दिया। इस परिवर्तन का. कर आभास किसी को नहीं हुआ। सभी दर्शकगण पूर्ववत् ही मंत्र मुग्धता से नृत्य का आनन्द ले रहे थे। र लेकिन महाराज ऋषभदेव जो जन्म से ही तीन ज्ञानों के / धारक थे, इस परिवर्तन से भीतर तक कांप उठे। यह घटना उस 7 अलौकिक पुरूष के लिए सामान्य नहीं रही। गम्भीर चिंतन सागर ) में डुबकी लगाते हुए महाराज के नेत्र स्वतः बन्द हो गये। 1. अहा! पहली नीलांजना का विनाश व तत्काल दूसरी M) नीलांजना की उत्पत्ति बस इसी तरह तो संसार में द्रव्यों की पर्यायों श्री में उत्पत्ति व लय का क्रम अनादि काल से चल आ रहा है। प्रत्येक 2 द्रव्य की सत्ता अनादि निधन होते हुए भी पर्यायों में प्रतिपल परिवर्तन होता रहती है। का संसार रूपी रंगमंच पर मात्र परिवर्तन होते रहते हैं पर 8 रंगमंच में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं आता। इसी तरह मूलर सत्ता शाश्वत ध्रुव व अचल है। श्री ऋषभदेव की आत्मानुभूति तीव्रतर होती जा रही थी। र विचार मग्न महाराज को अपने आयुष्य के अन्तिम क्षण का भास stietotestautostoeltoeste

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