Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan
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________________ puolesta este eventuese र समभावपूर्वक विचरण करने लगे। छ: महीने तक प्रभु निराहार रहकर मौन साधना करते रहे। देह में रहते हुए भी देहातीत 3) अवस्था की अनुभूति प्रबल से प्रबलतम होती गई और प्रभु वीतरागता (ह के सन्निकट पहुँचते गये। __तपस्या में अत्यधिक तल्लीनता के कारण ही "आदिमबाबा" के रूप में प्रसिद्ध हुए। कच्छ महाकच्छ आदि साधु प्रभु की उत्कृष्ट तप, मौन व ध्यान साधना को देखकर दंग रह गये थे। जबसे वे सभी दीक्षित A) हुए तभी से उन्हें प्रतीक्षा थी कि प्रभु कभी तो हमें विधि-निषेध का ( 2) मार्ग बताएंगे। किन्तु प्रभु तो निस्पृह भाव से आत्माभिमुख होकर आत्म 1) संशोधन में तल्लीन थे। प्रभु धैर्यता व सहिष्णुता के अगाध सागर थे। सरिता व कुएँ बावड़ियों का निर्मल व शीतल जल तथा वृक्षों के सुस्वादु फल प्रभु को अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकते थे। Rs कितने ही समय तक कच्छ महाकच्छ आदि साधु भी पताकावत् / प्रभु के मार्ग का अनुसरण करते रहे, किन्तु उनके धैर्यता व र सहिष्णुता की सीमा आ गई / भूख व प्यास सताने लगी। निर्मल जल से भरे हुए सुन्दर सरोवरों को देखकर उनका मन लुभा जाता था। सुस्वादु रसदार फल उनके भूखे पेट के आगे मानो भेंट चढ़ाये जाते थे। मार्ग में लोगों द्वारा दी गई बहुमूल्य भेटें उनकी सुप्त ( 2) मनोवृत्ति को जाग्रत करती थीं। Guskagesdegensteagensidesertsgesdeegeetkeegeeagensidergency

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